मेरी ख्वाहिसों को रंगीनियत का एहसास दिला रही
मेरे ख़्वाबों में तुम इस कदर छा रही
जन्नत की मन्नत अब हम क्यूँ करें
आशियाने में अपने तेरी जुल्फों में क्यूँ न डूबा करें
इतनी हसीन हो और कहती हैं तारीफ़ भी न कया करें
जिन्दगी को गुलाबों से महका के
मुझे अपना बनाके
तेरे एहसान हम कैसे चुकाए
तेरा एहसास हम कैसे भुलाएं
जीवन की रफ़्तार
रुक – रुक कर रही इश्तिहार
तेरे किमो पे करते हैं निसार
यह दुनिया यह जहां यह बहार
