क्या कभी किसी रोज
वो दिन आएगा
जब तुम्हारे दिल से
वो पुराना दर्द मिट जाएगा
अपनी चुप्पी से मुझे क्यों
बारम्बार कातिल होने का
एहसास कराती हो
क्या तुम मेरे दिल में बैठे
दर्द को पहचानती हो
अब एक एक बात से
काँटों सा एहसास कराती हो
अपने दिल की बात
भला मुझीसे छुपाती हो
वैसे तो हमारी हमदर्द कहलाती हो
और न जाने कितने दर्द
अपने दिल में छुपाती हो
शायद अब तुम्हे मेरी जरुरत नहीं
मैं भी एक इंसान हूँ कोई मूरत नही
यही खड़े-खड़े
इंतजार तुम्हारा कर लेगे
आज नही कल सही
यह कह कहके
जिन्दगी का गुजरा कर लेगें