तुम्हे शामिल करने की आरजू रखते हैं हो कहीं भी पर तेरी गुज़ारिश करते हैं इंतजार एस दफा दर्द से बेचेंन कर रहा हम अब हर पल तेरी ख्वाहिश रखते हैं कल्पना करना भी मुश्किल है हर रोज उस खुदा से तेरी खेरियत कि दुआ करते हैं
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बाँहों में तेरी
आने की ख्वाहिश हमारे दिल में है होठों से तेरे दो लफ्ज प्यार के सुनने कि आरजू हमारे सीने में है आँखों में तेरी काजल बन छुप जाने कि हसरत जाने कब से हमारे दिल में है तुम्हारी खूबसूरती को जीने कि चाहत लिए आज हम फिर तेरी महफिल में हैं
खूबसूरती को तुम्हारी
हम कुछ यूँ जि जाएँगे जीवन में तुम्हारे हम बहार बन छाएंगे सपनों में तुम्हारे हम रोज आएँगे चाहत में तुम्हारी तुम्ही से कहाल्वाएंगें जो यह न हो सका हमसे हम तेरे प्यार में खुद हि को भूल जजाएंगे
हिसाब मांगती थी चूड़ियाँ तुम्हारी
जवाब चाहती थी बिंदिया तुम्हारी हम सोचते थे बस तुम हो हमारे क्या जानते थे हम हो चुके थे तुम्हारे तेरी याद में भूल रहा हूँ भुला राला हूँ खुद हि को आस तुम्ही से बांद रहा हूँ बस तुम्हारी खातिर जाग रहा हूँ अनजाने सपनों के पीछे भाग रहा था केसे लड़खड़ाते क़दमों को…
फूलों कि सेज
माँ का करेज हिफाजत कि रेल रिश्तों का मेल कुछ ऐसा हि है बचपन का खेल बड़े बड़े सपनों की इमारत रखते हैं कभी कभी मासूमियत में इतिहास रचते हैं हर पल एक सुनहरी सी दुनिया कि छाया माँ तेरे आँचल में दिखती है चाँद-सितारों कि दुनिया भी तेरी गोद को तरसती है
आदत है हमारी
आदत है हमारी ठोकरे कितनी भी खाए उतरनी नहीं खुमारी हमारी चाहे हम टूट कर बिखरक्यूँ न जायें पीठ पीछे हम न जाने क्या क्या कहलाए फिर भी धुल न झोंक पाएं हर रास्ते हर मंजिल हर आएने कि कसक जाने कहाँ कहाँ बिखरी पड़ी है मेरे सपनो कि कि झलक पर में न भूला…
ना रोको खुदको
ना किसी को करने को मनमानी । बड़े बड़े सबक सिखला जाती यह नशीली जवानी । सन्नाटो में ना दोडो लेकर अपनी आवाज । ना रखो में कोई राज । जरा सुना दो हमे भी साज । जिसे याद कर आती आ जाती है दिल से तुम्हारी भी आवाज । आने वाला वक़्त है हम…
ऊूँची उड़ान भरने को
तरक्की की चाहत लिए वो बस चल दिए किसी ने रोका किसी ने टोका शायद वो उनकी फितरत से अनजान थे या यूँ कहे की नादान थे ऊूँची उड़ान भरने को उनके पंख फड फड़ा उठे कुछ नया करने की आदत में वो बरसो की नींद से जाग उठे बैठे -बैठे वो भी सपनो में…
एक महात्मा हमारे जीवन में उतरा
चुन चुन के खुशियाँ उसकी झोली में भर घूंगरू से प्यार बेपनाह कर राजू ने रोज़ी के दिल के आँगन में ऐसा गुलिस्तान बसाया की फूनों की खुशबूं से रोजी का पल पल महकाया दोनों कि दुनीया गजब की सज चुकी थी राजू के माथे पे रोजी के पैरो की धुल थी दुनिया कह रही…
जो रुक जाता
माना शुरुवात में हम हम ना थे पर हालातों ने हमको बदल के रख दिया और फिर कुछ ऐसा हमने किया की हर किसी की नज़र में जैसे पल भर में सवेरा हो गया जो रुक जाता फकसी की बातों में आ जाता तो कैसे अपनी मंजिल से इस जहां का नज़ारा कर पाता काश…