हमारी जिन्दगी के हर रंग से कहीं न कहीं CONNECTED ही होता है पैसा , वो पैस जो हमारी जिन्दगी को आसान बना देता है , बशर्त उसमे प्यार हो , मोहब्बत हो , किसी अपने का साथ हो , और जिन्दगी मेहरबान हो ।
आज एक कहानी उस पैसे की सुनाते हैं , जो कहाँ का कहाँ पहुँच जाता है । मैं एक रूपये 500 का नोट हूँ । 12 DEC 2004 को मेर जन्म हुआ और हमारे बाप का चेहरा मेरी पहचान बना । RBI से SBI पहुंचा और वहाँ से एक आम इंसान की जेब में , जो मुझे रखना तो बहुत चाहता है , पर बेचारे के महीने के खर्चे ही उसे महीने के आखिर में कर्जदार बना देते है । जिसका एक भरा पूरा परिवार हो , जिसकी आँखों म जीवनसाथी के लिए बेहिसाब प्यार हो , पर कमबख्त वक्त यही दगाबाज़ हो उस की कद्र भला कौन करे । सरकारी अस्पताल में माँ को भर्ती कराया था उसने , डॉकटर ने कहा ऑपरेशन करना पड़ेगा । पर डॉकटर को ऑपरेशन से पहले की बड़ फ़ीस भी तो देनी थी । सो मैं अब डॉकटर साहब का हो चुका था । देखा आपने मैं कैसे आम आदमी की जेब से डॉकटर साहब के महंगे पर्स में समा गया । डॉकटर साहब फ़ोन पर बतिया रहे थे । कहीं किसी डील की बात हो रही थी । उन्होंने मुझे एक सूटकेस में रख दिया । जहां मुझ जैसे जाने कितने ही नोट थे । वो भी मेरी ही तरह जाने कहाँ –कहाँ से आये थे । सुनने में आया डॉकटर साहब कोई ज़मीन का सौदा करन जा रहे थे ।
मैंने सुन वो कह रहे थे 60% सूटकेस में हैं और 40% का चेक है । वो किसी बिल्डर से बात कर रहे थे । साथी बताने लगे हम सब ब्लैक मनी हैं । मैंने पूछा भल वो कैसे , त वो कहने लगे लगता है तू नया आया है , सुन अगर यह डॉकटर हमार जानकारी सरकार को दे दे तो उसे टैकस चुकाना पड़ेगा और अगर ज्याद शॉपिंग करे , महंगी गाडिया ख़रीदे तो इनकम टैकस की RAID भी पड सकती है । आजकल सबसे सेफ तरीका है काले को सफ़ेद में बदलने का प्रॉपटी खरीदो 50 की और रजिस्ट्री कराओ 20 की हो गये ना 30 काल वाले सफ़ेद । यह इंसान बड़ा तेज़ होता है । एक और किस्सा सुनाऊूँ एक शोरुम के मालिक का पहले मैं वही था । मैंने देखा साल भर वहाँ मक्खियाँ उड़ती थी और मगर फिर भी कोई कस्टमर आता तो कोई डिस्काउंट नहीं , कहते फिक्स्ड रेट है , आइटम आउटडेटेड हो रहे थे , पर मालिक के चहरे पर शिकन तक नहीं थी समझ में नहीं आता था । यह परिवार को कमा के क्या खिलाता होगा । पर जब उसके और उसके परिवार क ठाठ देखे तो लगा जैसे कोई पुराना रईस है । पर बाद में समझ आय वो तो कुछ और ही धंधा करता था , वो भी ऐसा चाहे मार्किट कितना ही मंदा हो , पर खूब दौड़ता था उसका धंधा । मैंने पूछा भाई ऐसा कैसा बिजनस था । त वो कहने लगा तू अभी बच्चा है नहीं समझेगा । बातों – बातों में , कुछ चंद मुलाकातों में मैं बड़ा हो गया । मैंने सुना था अगर कभी बैंक जाओ तो समझ लेना की उस दिन , हम सफ़ेद ह जायेंगे । अरे नहीं यह कोई बैंक नहीं लगता , अरे यह तो पोस्ट ऑफिस है भला मेरा यहाँ क्या काम । आज मुझ जैसो के बदले कोई किसान विकास पत्र लिया जा रहा था । वहाँ पोस्ट ऑफिस के कर्मचारी बतिया रहे थे की 01 जनवरी 2015 से 2005 से पहले के नोट बंद हो रहे हैं और जब से यह खबर आई है मुझ जैसे जाने कितने ही आज रिटायर होने को पोस्ट-ऑकिस में भर्ती हो रहे हैं । चलो कम से कम मोदी सरकार की वजह स जीवन के आखरी क्षण तो राहत में गुजरेंगे । और जो रिटायर नहीं हुए वो देश की प्रगति में हाथ बताएँगे । आप सभी से गुजारिश है मुझ जैसे नोट को अगली दफा निर्जीव ना समझना । और फिर कभी न कहना की पैसा हाथों की मैल होता है । मैल तो इंसान की नीयत में छुपा मैंने बेहद करीब से देखा है ।